Saturday 11 July 2015

   दोपहर  में  आराम से सो रही थी कि  अचानक  हुए  शोर  ने जगा  दिया  करवट  बदल  कर  सोने  की  कोशिश  का  कोई  फायदा  होता नहीं हुआ  तो  उठना  ही बेहतर  लगा।  अभी  बेड से पैर  नीचे  लटकाय  ही  था कि  दरवाजा जोर जोर  से पीटा  जाने लगा।  उफ़  क्या  मुसीबत है। अब  तो उठना  ही पड़ेगा।
           दरवाजा खोला। सामने  थी  सूजी आँखें  लिये परबतिया। उसने रोते रोते ऊँगली से इशारा किया  "मेरी माई ' सड़क के बीचोबीच  बने डिवाइडर  पर बैठी थी  फुलिया।  अस्तव्यस्त  कपडे बिखरे  बाल।  रोती रोती  गलिया रही  थी और उसका  घरवाला  जुगनू  कभी  डण्डा  तो कभी  चप्पल  ले  मारने  दौड़ता  सरे झुंगियो  वाले  हा-हा  करते  बचाने  दौड़ते।
           फुलिया  मेरे घर के सामने  झुगी  डाल  रहती।  पतली  छरहरी।  पॉँच  बच्चों  की माँ।  छः  कोठी  में      झाड़ू  बर्तन  करती है।   उसी से रोटी  चलती  . जुगनू रिक्शा  चलाता  है पर कोई  नशा उससे  नही बचा।
                   बड़ीबेटी   राधा  की  रोक का रुपया  दे  आया है  बिना  बताये पूछे।  फुलिया  का बड़बड़ाना जारी है हे भगवान  कहाँ जाऊ  क्या करूँ  पहले  तो  राधा  डुबो दी बीस साल  बड़ा  बटेऊ  ढूढ़ा अब दस  हजार  रुपया  मांग  रहा  है   जुगनू  मुझे  देखते  ही  कहीं  चला गया  है
            मैं  फुलिया  को दिलासा  देती  हू।   चल उठ  .  वह. मेरे साथ  आ गई  है  मैंम जी  आप से डरता  है आप कहना  शराब  न पिए  राधा  का रिश्ता  तोड़ दे।  उसकी  आँखों में आस है  मैं  चुप  हूँ  जानती  हूँ  कुछ  नहीं होगा  पर  फुलिया  की  आँखों  से जो बारिश हो रही है उसका क्या

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